Swati Sharma

लाइब्रेरी में जोड़ें

लेखनी कहानी -24-Nov-2022 (यादों के झरोखे से :-भाग 10)

   बचपन से ही मैं अंतर्मुखी थी। मुझे लोगों के सामने खुद को अभिव्यक्त करना नहीं आता था। मुझे बातचीत शुरू करना नहीं आता था। मैं हमेशा अपने आप में व्यस्त रहती थी। अगर किसी ने अपने लाभ के लिए मुझसे अच्छी तरह से बात की, तो मैं उनकी मदद कर देती। मुझे नहीं पता था कि मेरा आत्म मूल्य क्या है। लोग ऐसे लोगों का फायदा उठाते हैं और जब ऐसे लोगों को मदद की जरूरत होती है तो वे मुंह फेरकर चले जाते हैं। इस दुनिया में सिर्फ मैं ही नहीं ऐसे बहुत से लोग मौजूद हैं। जो केवल देना जानते हैं।
   लेकिन जीवन सबसे बड़ा शिक्षक है। जीवन आपको साम दाम दण्ड भेद से सिखा ही देता है। जीवन आपको हमेशा सही और संतुलित प्राणी बनने के लिए प्रेरित करता है। जब तक आप सही सबक नहीं लेते तब तक जीवन आपको आगे नहीं बढ़ाता है। जब मुझे लोगों की जरूरत पड़ी तो लोग में फेरकर चले गए। फिर, मैं एक तरफ शांति से बैठ गई और सोचा कि मैं कहाँ गलत हूं? मैंने क्या ग़लत किया? मैंने अपने जीवन की यात्रा के लिए कौन - सा गलत रास्ता अपनाया?
    मेरे पापा हमेशा कहते हैं कि अपना सही विश्लेषण करो। हमेशा खुद से और भगवान से सच बोलो। क्योंकि ये दोनों वो हैं जो आपको गहराई से जानते हैं। फिर मैंने स्वयं का विश्लेषण करना शुरू किया। मुझे सही उत्तर मिले।और मुझे अपनी कीमत का एहसास होने लगा। मैंने उन लोगों में निवेश करना शुरू किया, जो मुझमें निवेश करते हैं। किसी ने कहा है ना कि "आपका स्वास्थ्य ही आपकी असली दौलत है।" अगर आपको अपनी परवाह नहीं है तो कोई भी आपकी परवाह नहीं करेगा। अगर आप खुद को महत्व नहीं देंगे तो कोई भी आपको महत्व नहीं देगा। यदि आप खुद का सम्मान नहीं करेंगे, तो कोई भी आपको सम्मान नहीं देगा। अगर आप खुद से प्रेम नहीं करेंगे तो कोई आपसे प्रेम नहीं करेगा।
    हम हमेशा अपने बुरे दिनों की शिकायत करते हैं। लेकिन सच तो यह है कि हमारे बुरे दिन हमें यह बताते हैं कि कौन आपके सच्चे शुभचिंतक हैं और कौन नहीं? इसलिए हमें अपने बुरे दिनों को सम्मान करना चाहिए, क्योंकि उस समय हमें अपने सच्चे साथियों के विषय में पता चलता है। मुझे पता है कि हमारे द्वारा हमारी गलतियों, हमारी अच्छाईयों को स्वीकार करना कठिन है। लेकिन जितना जल्दी हो सके यदि हम खुद को स्वीकार कर लेते हैं। हम खुद के प्रति सच्चे, वफादार और ईमानदार होने लगते हैं। हम अपने वास्तविक स्व से मिलते हैं और हम निश्चित रूप से सफलता की ओर एवम सही विकल्पों की ओर बढ़ते हैं।
    मैंने अपने बुरे दिनों से अपना यह सबसे अच्छा सबक सीखा है। अपनी उस असफलता से जो आप करना पसंद करते हैं, केवल आपके दिमाग में यही रहता है कि आपके कर्म आपको और किसी को नुकसान न पहुंचाएं। मैंने 'ना' कहना सीख लिया। मैंने स्वयं से प्रेम करना, स्वयं की देखभाल करना, स्वयं को महत्व देना, अपनी पसंद का सम्मान करना, स्वयं को अभिव्यक्त करना, दूसरों को जवाब देना सीख लिया और एक सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैंने अपने बुरे दिनों से सीखी वह यह कि सदैव दूसरों को देना और उनकी सेवा करना सही विकल्प नहीं होता। हमें उनकी सहायता करनी चाहिए, जो सच में उस सहायता के हकदार होते हैं।

   11
4 Comments

Pratikhya Priyadarshini

30-Nov-2022 09:18 PM

Bahut khoob 💐👍

Reply

Swati Sharma

30-Nov-2022 10:21 PM

Thank you 🙏🏻💐

Reply

Rajeev kumar jha

30-Nov-2022 12:08 PM

👌👏🙏🏻

Reply

Swati Sharma

30-Nov-2022 02:18 PM

🙏🏻😇💐

Reply